दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक बार फिर जोर का झटका देते हुए खरी खोटी सुनाई है। इस बार मामला दिल्ली नगर निगम के विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों की किताबें वितरण से संबंधित था। कोर्ट दिल्ली सीएम पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि आप लोगों ने अपने राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रीय हित को धता बता दिया है। कोर्ट ने तो केजरीवाल को ‘घड़ियाली आंसू बहाने वाला’ तक बोल दिया।
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट में एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अहा गया था कि नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन अभी तक दिल्ली सरकार के सरकारी विद्यालयों में बच्चों शैक्षणिक सामग्री जैसे कापी-किताब का वितरण नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने नगर निगम आयुक्त ओ भी तलब किया था, जिसकी तरफ से कहा गया कि यह विफलता एक स्थाई समिति के गठन ना हो पाने के कारण हुई है, जो लगभग 5 करोड़ रुपए की अनुशंसा करती है। सरकारी वकील ने कहा कि इस समिति के गठन के लिए सीएम केजरीवाल की अनुमति लेनी पड़ती है।
गिरफ्तारी के बावजूद सीएम हैं मतलब…
आयुक्त और सरकारी वकील की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई कर रहे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा गुस्से में आ गए और कहा कि यह अत्यंत खेदजनक है कि दिल्ली सरकार ने अपने हितों को छात्रों के हितों से ऊपर रखा है। दो जजों की पीठ की तरफ से कहा गया, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपने ऐसा किया है। यह गलत है और इस मामले में यही बात उजागर हुई है कि जेल में होने के बावजूद आप सीएम हैं, जिसका मतलब यह हुआ कि आपको सिर्फ अपनी चिंता है, ना कि बच्चों की, जो एक प्रकार के राष्ट्रीय हित के अंतर्गत आता है।”
इस बीच, दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने स्पष्ट किया कि वह मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे थे और अदालत को आश्वासन दिया कि यदि एमसीडी आयुक्त औपचारिक रूप से वित्तीय मंजूरी का अनुरोध करते हैं तो शैक्षिक सामग्री की कमी से संबंधित मामले का समाधान किया जाएगा। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, "चुनाव आपका है कि मुख्यमंत्री जेल में होने के बावजूद बने रहेंगे। हमें यह कहना होगा। यह आपके प्रशासन की इच्छा है। आप हमें उस रास्ते पर जाने के लिए कह रहे हैं और हम पूरी ताकत के साथ आएंगे।"
पीठ ने आगे कहा, "आप लोग अपनी समिति का चुनाव भी नहीं कर सकते और आप हमसे कहें कि आप प्रस्ताव पारित करेंगे?... क्या आप चाहते हैं कि हम सदन में जो हो रहा है उसका न्यायिक संज्ञान लें? क्या आपको बच्चों की चिंता नहीं होती? हमें नहीं लगता कि आप यह सब देख पा रहे हैं। आप बस ‘घड़ियाली आंसू’ बहा रहे हैं।”